इतिहास के पन्नों से

 नमस्कार! मैं हूँ तन्मय द्विवेदी आपको हमारा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद🙏

 मैं बात करने जा रहा हूँ आजीवक की,कौन होते है आजीवक। बहुत लोगों के संदेश आए आजीवक कौन है इनका इतिहास से क्या संबंध है | आत्मा और परमात्मा को ना मानने  वाले विश्वासी का सम्प्रदाय आजीवक कहलाता है |

इसकी स्थापना 400 ईसा वर्ष पूर्व मक्खाली गोस्सल ने की थी  इस संप्रदाय का बढावा सम्राट बिंदुसार ने दिया था | आजीवको के लिए बिंदुसार ने बराबर की गुफाएं बनवायी | कहा जाता है कि असुरो को डरवाने व भ्रमित करने के लिए ऋषि बृहस्पति ने नास्तिक दर्शन के ज्ञान का प्रतिपादन किया। ( पदम पुरान एवं विष्णु पुराण) 

ब्रह्माजी के मानस पुत्र हुए थे कश्यप ऋषि और कश्यप ऋषि की शादी हुई थी दक्ष की पुत्री दिति और अदिति से अदिति के पुत्र आगे चलकर के दैत्य नाम से जाने गए और अदिति के पुत्र आदित्य अर्थात देव नाम से प्रसिद्ध हुए । दैत्य ओर देव में हमेशा युद्ध हुआ करता था । 

ब्रह्मा जी ने आदित्यों की दैत्य से रक्षा के लिए नास्तिक दर्शन का सूत्रपात किया और नास्तिक दर्शन का सबसे पहले उन्होंने ज्ञान दिया बृहस्पति देव को बृहस्पति देव  आदित्यो‌ के गुरु थे इस प्रकार बृहस्पति देव को आदित्य (देव) की रक्षा करना स्वाभविक था। इसीलिए उन्होंने नास्तिक दर्शन का सर्वप्रथम ज्ञान चार्वाक को दिया । चार्वाक से शुक्राचार्य और शुक्राचार्य से दैत्यों को ज्ञान मिला। 

 महाभारत के एक प्रकरण में भी दिखाई पड़ता है -प्रकरण है विदुर और धृतराष्ट्र संवाद। इसी प्रकरण को ले करके धर्मवीर भारती ने अंधा युग में धृतराष्ट्र को व्यक्तिवादी तौर पर दिखाया है। 

अंधा युग में धृतराष्ट्र कहते हैं -

"मेरे लिए वहां मेरी ममता ही नीति थी मर्यादा " क्योंकि मैंने इस संसार को अपने अंतस से जाना था । धृतराष्ट्र कहते हैं कि मैंने संसार को अपने अंदर के अनुभव से जाना  है।"

 

ऋषि बृहस्पति के  शिष्य हुए चार्वाक  |

चार्वाक  के बाद उनके जो महान शिष्य हुए उनके नाम कुछ इस प्रकार आते है 

 1पूरन कश्यप का 

 2  मक्खपुलित घोसाल

3 संजय बेलतठपुत

 4 ककुध कच्चायन   

5 निगंठनापुत

6 अजीत केस कंबली -अजीत केस कंबली के जीवन से प्रभावित होकर  हिंदी के महान कवि सच्चिदानंद हीरानंद  वात्स्यायन अज्ञेय जी ने असाध्य वीणा नामक पुस्तक लिखी है। 

जो हिंदी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर है। अजीत  केश कंबली के जीवन की उच्चतम साधना को अज्ञेय ने अपनी सूक्ष्मदर्शी दृष्टि से देखा और काव्य के सुर से पिरोया। असाध्य वीणा की कुछ पंक्तियां यहां पर लिखी गई हैं । 

                          👇👇👇

 आ गए प्रियंवद! केस कंबली! गुफा- गेह

राजा ने आसन दिया कहा ; 

कृतकृत्य हुआ मैं तात !  पधारे आप ।

भरोसा है अब मुझ को

साध आज मेरी जीवन की पूरी होगी ।" 

                        😍😍😍

आजीवक  संत ने ईशा वर्ष पूर्व में भारतीय क्रांति में महान योगदान दिया इसकी कुछ विशेषताएं थी जो निम्नवत हैं

अजीवक क्रांतिकारियों ने स्वतंत्र विचारधारा तथा खोज की भावना को प्रबल बनाया। जनता जागृत जिज्ञासु व सुशील होने लगी।

इस क्रांति के परिणाम स्वरूप अनेक संप्रदायों का प्रादुर्भाव हुआ जिन्हें विभिन्न देशों द्वारा राजाश्रय प्रदान किया 

इस क्रांति ने ब्राम्हण क्षत्रिय संघर्ष को नष्ट कर दिया । 

आजीवक संप्रदाय के विश्वासी नास्तिक होते हैं ।ये ना तो परमात्मा को मानते हैं और ना ही आत्मा को मानते हैं ।आजीवक के अनुसार शरीर पांच तत्वों से नहीं चार तत्व से मिलकर के बना हुआ  है और मृत्यु के बाद यह शरीर इन्हीं चार तत्व में मिल जाता है। और ये कहते हैं कि संसार को  ईश्वर ने नहीं बनाया है और वह बना ही नहीं सकता है  क्योंकि वह होता ही नहीं है।

अजीवक इसके  साथ उदाहरण भी देते हैं कि जैसे 

पीली मिट्टी+ गोबर +दही = बिच्छू 

इसी प्रकार चार तत्वों के मिश्रण से मनुष्य का शरीर बन जाता है। इसीलिए शरीर परमात्मा द्वारा निर्मित ना हो करके इन चार तत्वों से मिलकर के बना हुआ है।

अजीवक चार तत्व जो मानते है वो ज्ञातव्य है 

      पानी+अग्नि+वायु+ मिट्टी = जीव की उत्पत्ति

मिट्टी वायु जल अग्नि के अस्तित्व को तो स्वीकार करते है लेकिन गगन को नहीं मानते हैं क्योंकि उनका मानना है अनुमान पर आधारित सत्य ,सत्य नहीं हो सकता। सत्य वो होता है जो हमें दिखाई देता है और जिसे हम देख सकते हैं। 

आजीवक संप्रदाय से ही नास्तिक दर्शन भारत से पाश्चात्य देशों में गया है। पाश्चात्य का नास्तिक दर्शन के भारत के नास्तिक दर्शन से साम्य रखता है और उन्हीं पाश्चात्य नास्तिक दार्शनिक में फ्रेडरिक नीत्शे नामक एक नास्तिक दार्शनिक हुए थे जिनका सुविख्यात कथन ईश्वर मर चुका है ।

हमारी समझ के अनुसार क्या जिस वस्तु को छू नहीं सकते हैं तो क्या वह  वस्तु होती नहीं है इस प्रकार अंधा आदमी प्रकाश को नहीं देख सकता है और ना ही उसे छू सकता है तो क्या प्रकाश का अस्तित्व नहीं हुआ । और रही बात दूसरी अनुमान पर आधारित सत्य ,सत्य नहीं होता है हमारे हिसाब से हम लोग गणित के  प्रश्न अनुमान पर ही हल करते हैं और अंतरिक्ष की दूरी, वजन के माफ का निर्धारण अनुमान पर ही किया जाता है।

कुछ विद्वान आजीवक और निराकार संत की विचारधारा और उनकी जीवनचर्या को एक ही मानते हैं मैं सिर्फ इतना ही लिखना  चाहूंगा की अजीवक आत्मा और परमात्मा की नहीं मानते हैं और निराकार संत परमात्मा की निर्गुण स्वरूप की आराधना करते हैं और आत्मा की सत्ता को भी स्वीकार करते हैं इसीलिए जिन विद्वान पुरुष ने कबीर को कबूतर बाज कहकर के अजीवक के रूप में उनकी भर्त्सना की है। वह गलत है आजीवक के बारे में मैं सिर्फ इतना ही लिखूंगा । 

आगे बहुत दिन से हमारे पास कई संदेश आ रहे हैं कि आप हमें इतिहास लेखन में बदलाव के कुछ नवीन विषय सूची का सुझाव दें। इतिहास लेखन के बदलाव के मुख्य सुझाव नीचे दिए गए हैं........✍️✍️✍️ 

                               👇👇👇

                    विचारधारा समनव्यवादी होनी चाहिए 

1.सिंधु सभ्यता का नाम सरस्वती सिंधु सभ्यता और सारस्वत साम्राज्य को इतिहास के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।

2.आर्यों का आदि देश भारत, संस्कृत और हिंदी की भाषा आर्यकुल की वाले मत पर अधिक बल दिया जाए।

3.वैदिक भारत की उन्नति को देखने के लिए वेद वास्तुकला मंदिर  और पौराणिक मिथक को अच्छा स्थान मिले। साथ में वैदिक काल की महिलाओं के जनजीवन समाजिक कार्यों के पुरुषों से अधिक योगदान को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाए।

4.काल का नायक राजा के साथ संत को भी माना जाए जैसे चाणक्य और चंद्रगुप्त भक्ति काल के संत और सल्तनत काल के सुल्तान ।

5.भारत के प्रथम शासक प्रथम शासिका (पृथु ,यशोमती ) तथा प्रथम उपलब्धि को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए जैसे विश्व का प्रथम युद्ध 10 राज्ञ का युद्ध वैशाली लोकतंत्र की जननी योग, प्रथम आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति,  शास्त्र शस्त्र का अध्ययन आदि।

6.भारत पर मुस्लिम आक्रमण के साथ अन्य विदेशी आक्रमण को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए और उनके बारे में अवगत कराया जाए विदेशी आक्रमण में डेरियस का आक्रमण मल्लिका सेमरामिस का आक्रमण और सिकंदर की हिंसा से भी अवगत कराया जाए ।

7.मध्यकालीन इतिहास को राजपूत काल के केंद्र में रखा जाए बप्पा रावल से शुरुआत मानी जाए रानी पद्मावती गोरा बादल भक्ति आंदोलन की महिला भक्तों को अलग से स्थान मिले।

 a. हिंदी साहित्य पर जोर दिया जाए जैन धर्म बौद्ध धर्म के साथ पारसी धर्म, यहूदी धर्म, हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के बारे में पढ़ाया जाए  कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य कश्मीर की मीरा ललद्य  के बारे में अवगत कराया जाए।

8. खलनायक चरित्रों का अलग से एक अध्याय जोड़ा जाए ।जैसे घनानंद ,खिलजी, औरंगजेब आदि 

9. शेरशाह , चांदबीबी, हैदर अली, टीपू सुलतान जैसे मुस्लिम शहंशाह को उभारा जाए ।

10. कश्मीर और असम के इतिहास को पाठ्यक्रम मे अहम हिस्सा दिया जाए इससे भारत मे एतिहासिक एकता आयेगीं।

11. आधुनिक इतिहास में वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी के योगदान को अहम स्थान मिले जैसे मतांगिनी हजारा , स्वरूप रानी नेहरु , विट्ठल भाई पटेल ,सीतारमैया आदि

12.समाज को सशक्त बनाने के लिऐ महिला सशक्ति करण , किन्नर ,आदिवासी, दलित , दिव्यांग हस्तियों के कार्य की महानता का चरित्र चित्रण और इनका इतिहास पढ़ाया जाए ।

 जैसे - वीरांगना दिव्यांग विशप्ला , किन्नौर प्रदेश का इतिहास किन्नर चित्ररथ , अर्जुन पुत्र इरावन, शिखंडनी ,मालिक काफुर आदिवासी एकलव्य ,बिरसा मुंडा , दलित संत रविदास आदि ।

  नोट- महिला शासन के कार्यकाल को अहेम स्थान मिले उड़िसा का भुवामकाल, भोपाल की बेगमें, तमिलनाडु की रानी वेलु, मंत्री कुयली, रुद्रमा देवी , नागालैंड की रानी गोदिन्लयू, मराठा की ताराबाई , कश्मीर की रानी यशोवती से लेकर अंतिम रानी कोटा तक, रानी चेनम्मा , रानी अब्बका, रानी नायकी,दुर्गावती, विरांगना उदादेवी आदि ।

                                                  ......✍️✍️✍️

टिप्पणियाँ

  1. मेरा पहला लेख है कृपया पढने के बाद त्रुटियों को क्षमा करना

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