इतिहास के पन्नों से

 इतिहास बेगमों का                                                                                       नमस्कार! मैं हूँ तन्मय द्विवेदी और स्वागत करता हूँ आपका अपना ब्लाग पर |🙏   

                                   मैं जिक्र करने जा रहा हूँ इतिहास की उन बातों का जो मुझे इतिहास  मे न पढाया गया है और न ही बताया गया |भोपाल शहर की बेगमों के बारे मे शायद किसी ने सुना हो |सुना भले ही किसी ने बेगमों के बारे मे न हो, लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है |

महिला समानता की बात करने वालो का भी ध्यान इधर नहीं जाता है और वही घिसी पिटी पुरानी छिछली बातों पर बात करने को मिल जाए बस |                                                     

                                  भोपाल शहर का और बेगम हुकुमत का नाम रौशन करने वाली प्रथम बेगम थीं ..... 
                                  👇👇👇
                             
 1. कुदसिया बेगम - अनपढ़ गौहर  बेगम ने  पति की मौत के बाद 1819ई.-1837ई. तक शासन किया | शासन का विरोध करने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी | अपने शासन काल में गुप्तचर वयवस्था  और सैन्य शासन को अपने हाथों में संभाला | गौहर महल और भोपाल की जामा मस्जिद का निर्माण कुदासिया बेगम ने ही कराया जो भोपाल कि विरासत में आज भी गिनी जाती है | अपनी बेटी सिकंदर जहाँ की तरबियत और परवरिश खुद अपने हाथो से किया । शासन के लिए  राजनीत और सैन्य शक्ति में निपुण किया |सिकंदर जहां के बारे में निम्नलिखित जानकारी जुटाई गई है।                            
                              👇👇👇

                     
2. सिकंदर जहाँ बेेगम - कुदसिया बेगम की मौत के बाद 1844 ई. मे शासिका बनाया गया | युद्ध मे निपुण होने के बावजूद अपनी माँ की तरह नेक रानी साबित नहीं हुई क्योंकि 1857 ई. के विद्रोह मे अंग्रेजों का साथ दिया और इतिहास में हमेशा के लिए बदनाम और गद्दार रानी के रूप में दर्ज हो गई  । कुदसिया बेगम ने ना ही कोई महल बनवाए और ना ही उनकी कोई उत्तम शासन व्यवसथा थी कि हम उन्हें याद करे और उनको इतिहास में स्थान दिया जाए । इसलिए कुदसिया बेगम के बारे में इतना बहुत है ।
  
1868 ई. में कुदसिया बेगम की मौत के बाद शाहजहाँ बेगम ने शासन संभाला |जो बेगम मे सबसे सफल शासिका के रूप मे साबित हुुई।


3. शाहजहां बेगम - 1868 में शाहजहां बेगम ने हुक़ूमत संभाली ।भारत के इतिहास में खासकर भोपाल के इतिहास में शाहजहां बेगम का नाम उतने ही अदब से लिया जाता जितना अदब से लखनऊ में बेगम हजरत महल और दक्षिण भारत में चांद बीबी का लिया जाता है। शाहजहां बेगम जैसे नाम से ही पता चलता है कि स्थापत्य का बड़ा शौक रहा होगा और ताज़्जुब कि बात है शाहजहां ने ताजमहल बनवाया था तो भोपाल में शाहजहां बेगम ने ताजमहल बनवाया ।

                         बेगम शाहजहां ने अंग्रेजी शासन से भोपाल के सल्तनत को बचाकर रखा और कर्नीघम के उस सपने को चूर किया जिसने कभी ख्वाब देखा था कि भारत की स्थापत्य कला ब्रिटिश मोहर की मोहताज होगी । बेगम शाहजहां ने भोपाल में तालाब एवम् उद्यान का निर्माण और भोपाल राजधानी की कायाकल्प में महत्वपर्ण योगदान दिया । इसके साथ ही शाहजहां बेगम ने भोपाल में ताज महल का निर्माण करवाया और भारत की सबसे बड़ी मस्जिद में से एक ताज -उल -मस्जिद का निर्माण करवाया । सुल्तान शाहजहां बेगम का सबसे बड़ा योगदान मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़ के निर्माण में  दिया गया है दान । इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता । यह योगदान इतिहास में उतना ही मायने रखता है जितना कि माता बसंत के नाम से विख्यात एनी बेसेंट का हिन्दू विश्ववद्यालय के निर्माण  में ।
शाहजहां बेगम जितनी खूबसूरत थी उससे कई गुना चालाक। जब अंग्रेज भारत की शान बौद्ध धर्म का आधार सांची का स्तूप को ब्रिटिश म्यूजियम में ले जाना चाहते थे तो उस समय शाहजहां ने सांची के स्तूप को प्लास्टर ऑफ पेरिस का बनवाकरअंग्रेज को दिखाया और उन्हें प्लास्टर ऑफ पेरिस के स्तूप को असली स्तूप बताकर उन्हें दिया । इस प्रकार उन्होंने अपनी सूझबझ से सही और ऐतिहासिक काम किया ।

शाहजहां बेगम का निजी जीवन जादा सुखद नहीं रहा । पहले पति  बक्की मोहम्मद खान की मौत के बाद दूसरा निकाह सद्दीक हसन खान के साथ किया लेकिन दूसरे सोहर कि भी मौत जल्द ही हो गई ।  पति के मौत के साथ 2 इनकी दोनों पोतियों की मौत हो गई । शाहजहां बेगम को  वालिदा सुल्तान जहां से कुछ ना नुखुस रहती थी । शाहजहा बेगम की मौत सन 1901 में गले के कैंसर से हुई थी और उन्होंने आदेश दिया था कि उनकी मौत पर भोपाल में शोग ना मनाया जाएं। शाहजहां की मौत के बाद भोपाल कि नयी आला -ए -हुकूमत सुल्तान जहां बेगम बनी ।

4. सुल्तान जहां बेगम  -सुल्तान जहां ,बेगम शाहजहां की वारिस थी । 1900 ई. शाहजहां बेगम के इंतकाल के बाद सुल्तान जहां बेगम भोपाल सल्तनत की सुल्तान बनी । सुल्तान जहां बेगम के सारे गुणों में मां शाहजहां बेगम की छवि दिखाई देती थी। 

      सुल्तान जहां बेगम ने भोपाल के सैन्य , न्याय , सिंचाई , कृषि कार्य व्यापार शिक्षा आदि में सुधार किया और भोपाल में नये दौर की शुरुआत की। यहां तक सुल्तान जहां बेगम मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़ की  आज तक की इकलौती महिला कुलपति हैं  और लड़कियों के लिए अलग से महिला शिक्षा विद्यायल कि स्थापना भोपाल में किया । चिकत्सा व्यवस्था को भी दुरुस्त किया और अस्पताल भी बनवाए खासकर महिलाओं के लिए । सुल्तान जहां बेगम ने समाज सुधार पर कुछ पुस्तकें भी लिखीं है ।

                                  👇👇👇
1.हिदायत तिमारदारी

2.सबिल उल जिन

3.महिस्त ओ  मोहशिरत

4.हिदायत उज जुजान

 सबसे प्रमुख कार्य सुल्तान जहां बेगम का था - मुस्लिम महिलाओं के हक की लड़ाई के लिए सन 1914 ई में इंडिया मुस्लिम लेडीज एसोसिएशन की स्थपना करना । इस संस्था के कारण से मुस्लिम समाज में कुछ जाग्रति आयी । भोपाल के लिए अपने जीवन को कुर्बान कर देने वाली इस महान मल्लिका का अंत हुआ था 1926 ई में । बेगम की मौत पर भोपाल में शोक दिवस मनाया गया और तोप से सलामी दी गई ।

सुल्तान जहां के मौत के बाद उनका बेटा भोपाल का नवाब बना औेर दूसरी बेटी की शादी पटौदी खानदान में हुई । भारत विभाजन में इनकी बेटी पाकिस्तान चली गई । 

आगे चलकर यह खानदान सिनेमा में चला गया । मशहूर अभिनेत्री शर्मिला टैगोर, करीना, कपूर अमृता सिंह इस खानदान की बहू बनी ।

उड़ीसा के भुवाम वंस की शासिकाओ के बारे में जानकारी अगले लेख मे दी जाएगी |      
                                                       धन्यवाद 🙏    



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

इतिहास के पन्नों से

दास्तां- ऐ- अजूबा(किस्सा खून की बारिश का )

बातें- कुछ स्वयं और कुछ आपकी