आज़ादी - के गुमनाम सितारे

आज का लेख हमारा उन महान व्यक्तित्व पर है जो बिना यश कीर्ति के अपनी मातृभूमि के लिए अपनी जान कुरूबान कर दी। ये महान व्यक्ति ना तो मौत से डरते थे और ना हीं इन्हे शोहरत या दौलत की परवाह थी ।

 शर्म आती है इतिहसवेत्ताओं पर की इन शूरवीरों को इतिहास के पन्नों से नकार दिया । अब ना तो इन शूरवीरों को कोई जानने वाला है और ना हीं कोई इन्हें अपना मानने वाला ।

  इन शूरवीर में सबसे पहला नाम आता है पुर्तगाल हुक़ूमत को पराजित करने वाली अदम्य शक्ति ,कर्नाटक की महान रानी ,भारत की प्रथम स्वतंत्रता सेनानी- रानी अब्बका।

रानी अब्बका - रानी का जन्म कर्नाटक के उल्लाल नामक स्थान पर हुआ था । माता का नाम तिरुमला था जो वहां की राजमाता थी ।  कहा जाता है उल्लाल में मातृ सत्ता थी और तिरुमला ने उन्हें अपनी युवराज्ञी  घोषित किया । मां की मृत्यु के बाद प्रजा ने उन्हें अपनी शासिका स्वीकार लिया । 
 सन 1500 का समय था यूरोप में पुनर्जागरण हो चुका था । भूगोलिक खोज प्रारम्भ हो चुकी थीं । 1498 में भारत वास्कोडिगामा आ चुका था । वास्कोडिामा तो चला गया लेकिन कुछ पुर्तगाली व्यपार के लिए रुक गए । कालीकट के राजा जमोरियन ने उनका स्वागत किया। मौका पाकर उन धूर्त लोगो ने जमोरियन का गला काट कर हत्या कर दी और पुर्तगाली सम्राज्य की नीव रखी । 

  एक तरफ पुर्तगाली अपना सम्राज्य बढ़ा रहे थे तो दूसरी ओर कर्नाटक में फुट पड़ी हुई थी । रानी का पति लस्सपा रानी से हुए अपने विवाह विच्छेद अर्थात तलाक के अपमान का बदला लेना चाहता था । रानी के राज्य में, मुसलमान पारसी जैन सब जाती बिना धार्मिक कर के एक साथ रहती थी ।  पुर्तगालियो ने रानी को कर देने के लिए बाध्य किया । रानी ने कर भुगतान के लिए मना कर दिया था । उधर लस्सपा ने पुर्तगालियों को उल्लाल पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया । पुर्तगाली ने उल्लाल पर आक्रमण कर दिया। रानी ने साहस के साथ मुकाबला किया अंततःपुर्तगालियो को पीछे लौटना पड़ा ।
  1570 ई में पुर्तगालियों ने दोबारा आक्रमण किया । इस बार रानी की सेना युद्ध के लिए आश्वस्त थी । रानी ने उत्साह के साथ उनका हौसला बढ़ाया। रानी की मदद के लिए अहमद नगर और कालीकट के शासक भी साथ में युद्ध करने आए लेकन अंत में रानी युद्ध हार गई । उन्हे 20 सैनिकों के साथ मस्जिद में शरण लेनी पड़ी । कुछ दिन बाद रानी को बंदी बना लिया गया । बन्दी होने के बावजूद रानी विरोध करती रही और मौत को प्राप्त हो गई।
कर्नाटक की सरकार ने हाल ही रानी अब्बका के नाम पर एक जलपोत का नाम रखा है । उल्लाल में रानी अब्बका महोत्सव मनाया जाता है और रानी के नाम पर पुरस्कार  दिया जाता है । रानी अब्बका को भले आज के इतिहास में वह स्थान ना मिला हो जो स्थान रानी लक्ष्मीबाई और पद्मावती को प्राप्त है लेकिन योगदान कम नहीं है ।
कर्नाटक में रानी अब्बका को अभया रानी के नाम से जाना जाता है ।     
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आगे के लेख में मैआपको एक ऐसे गुमनाम क्रांतिकारी के बारे में बताऊंगा । जिन्होने देश की आजादी के लिए अपना खूबसूरत जीवन कुरुबान कर दिया और मौत को गले लगा लिया।इस गुमनाम योद्धा का नाम है - हेमू कालाणी

हेमू कालाणी-  हेमू कालाणी का जनम सन 1923 ई ब्रिटिश भारत के पाकिस्तान के सुक्कर नामक स्थान पर हुआ था । हेमू कालाणी पर भगत सिंग , मदन लाल ढींगरा खुदीराम बोस अनंत कन्हरे कल्पना दत्त से बहुत प्रभाव था । गांधी जी ने जब भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया तो हेमू कालाणी भी इस आंदोलन में कूद पड़े । पाकिस्तान को जाने वाली ट्रेन को लुटने के लिए ये और इनके साथी  ट्रेन के पटरी तोड़ रहे थे ।
                  पटरी तोड़ते हुए हेमू पकडे गए और कारावास में डाल दिए गए ।  जान माल के नुकसान के अपराध में उन्हे फांसी की सजा सुनाई गई । उन्हे एक शर्त पर फांसी से माफी दी जा सकती थी गर वे अपने साथियों का नाम बता देते । हेमू कालाणी ने  नाम बताने से मना कर दिया और उन्हे फांसी दे दी गई।  
भले लोग 23 मार्च को भगत सिंह को याद करते हो और हेमू  कालाणी को भूल जाते हो लेकन कहीं ना कहीं हेमू की याद की निशानी मिल ही जाती है । 
                                  हेमू के नाम पर भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया है और मध्य प्रदेश में एक कालोनी का नाम हेमू पर ही है । इतिहास में भी अच्छा स्थान देने की चर्चा चल रही है ।

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